Friday, 14 May 2021

विश्व रेड क्रॉस संगठन की प्रासंगिकता बढ़ी है...

        रेड क्रॉस एक ऐसा आपातकालीन प्रतिक्रिया संगठन है जो दुनिया भर में युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के शिकार लोगों के लिए मानवीय सहायता प्रदान करता है। इन्टरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रॉस और कई नेशनल सोसायटी इसका संचालन करती हैं। आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि विश्व के लगभग 210 देश इस संस्था से संबद्ध हैं। निष्पक्षता, मानवता, स्वतंत्रता, तटस्थता, एकता, स्वैच्छिक सेवा एवं सार्वभौमिकता रेड क्रॉस सोसायटी के सात प्रमुख सिद्धान्त हैं। जरूरतमंद लोगों की सेवा के लिए तत्पर स्वयंसेवकों के अभूतपूर्व योगदान का सम्मान करना भी रेड क्रॉस के उद्देश्य में शामिल है। 

यह एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा में स्थित है। रेडक्रॉस के जनक जीन हेनरी ड्यूनेंट का जन्म 8 मई, 1828 को हुआ था। उनके जन्मदिन को ही दुनिया भर में हर वर्ष विश्व रेड क्रॉस दिवस के रूप में मनाया जाता है। दरअसल यह दिवस मानव सेवा के लिए प्रेरित करने वाला एक ऐतिहासिक उपक्रम है। संगठन की महत्त्वपूर्ण गतिविधियों से आम जनमानस को परिचित करावाना भी रेड क्रॉस दिवस के मूल में है।

सभी देशों में रेडक्रॉस संगठनों को विस्तार देना एवं उसके आधारभूत सिद्धांतों का संरक्षण करना अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस सोसायटी का मूलभूत लक्ष्य है। यह संगठन मुख्य रूप से युद्ध के समय बीमार और जख़्मी लोगों की देखभाल के लिए स्थापित किया गया था, वक्त के साथ अन्य आपातकालीन परिस्थितियों में भी इसके दायित्वों का विस्तार होता चला गया। वर्तमान में रेड क्रॉस एजेंसियां ब्लड बैंक से लेकर विभिन्न तरह की स्वास्थ्य सेवाओं में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। मानवता की हिफाज़त करना रेड क्रॉस संगठन का पहला और अंतिम मकसद है। उल्लेखनीय है, आपातकालीन परिस्थितियों में समाज के कमजोर, असहाय और गरीब वर्ग को विशेष आर्थिक सहायता प्रदान करने में भी रेड क्रॉस समितियां आज पूरी निष्ठा के साथ तत्पर हैं। 

मानवीय जीवन और स्वास्थ्य की सुरक्षा के मिशन के साथ वर्ष 1863 में स्थापित संगठन रेड क्रॉस अपने वॉलेंटियर वर्क यानी स्वयंसेवा के लिए जाना जाता है। लगभग 150 वर्षों से पूरे विश्व में रेडक्रॉस के स्वयं सेवक असहाय एवं पीड़ित मानवता की सहायता के लिए काम करते आ रहे हैं। वैश्वीकरण के इस दौर में परमाणु हथियारों पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए युद्ध की बढ़ती आशंकाओं और समय-समय पर भूकंप, तूफान और अन्य अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाओं जैसी मुश्किल हालात से निपटने में अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस जैसी संस्था का महत्व आज और अधिक बढ़ गया है। शांति और सौहार्द के प्रतीक के रूप में इस संस्था ने अपने कर्मठ, समर्पित और कर्त्तव्यनिष्ठ स्वयंसेवकों के माध्यम से पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना ली है।

दुनिया भर में समय-समय पर युद्ध एवं भीषण प्राकृतिक आपदाएँ आती रही हैं, इसकी वजह से हजारों-लाखों लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी जिनको देखने-सुनने वाला कोई संगठन नहीं था। ऐसी स्थिति में मानवता की रक्षा के लिए हेनरी ड्यूनेंट ने ऐसा काम किया जो आज भी हमारे समक्ष एक मिसाल है। वर्ष 1901 में हेनरी ड्यूनेंट के अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें पहला नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।

विश्व रेड क्रॉस दिवस की चर्चा के क्रम में इस संस्था के गठन एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जान लेना हमारे लिए आवश्यक है। जीन हेनरी ड्यूनेंट 1859 में फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय की तलाश में गए थे। उन दिनों अल्जीरिया पर फ्रांस का कब्जा था। ड्यूनेंट को उम्मीद थी कि अल्जीरिया में व्यापारिक प्रतिष्ठान खोलने में नेपोलियन उनकी मदद करेंगे लेकिन ड्यूनेंट को सम्राट नेपोलियन से मिलने का मौका नहीं मिला। उसके बाद वह इटली गए, जहां उन्होंने 1859 में फ्रांस और ऑस्ट्रिया के मध्य सोल्फेरिनो का युद्ध देखा। उन्होंने देखा कि इस युद्ध में एक ही दिन में 40,000 से ज्यादा सैनिक मारे गए और लाखों घायल हुए। इस बात को हेनरी ने बहुत ही करीब से महसूस किया कि युद्ध में मारे गए हजारों सैनिकों और घायलों की देखभाल के लिए किसी भी प्रकार की चिकित्सकीय सुविधा नहीं है, इस घटना से हेनरी बहुत ही आहत हुए। उन्होंने तत्काल वहाँ स्वयं सेवकों के एक समूह को संगठित किया, और घायलों की हर संभव मदद की। हेनरी ने स्वयं घायलों का उपचार किया साथ ही उनके परिवार के लोगों को पत्र भी लिखा। इस घटना के 3 साल बाद ड्यूनेंट ने अपने दु:खद अनुभवों को एक पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित किया। पुस्तक का नाम था ‘अ मेमरी ऑफ सोल्फेरिनो’। उन्होंने अपनी इस पुस्तक में युद्ध की त्रासद स्थितियों का वर्णन करते हुए उससे उपजे संकटों पर अपनी गहरी चिंता जाहिर की। पुस्तक के अंत में हेनरी ने एक स्थायी अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की स्थापना का सुझाव भी दिया। ऐसी सोसायटी जो युद्ध में घायल लोगों का इलाज कर सके और भीषण आपदा से निपटने में मददगार हो। आगे चलकर उन्होंने 1863 में इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस की स्थापना की। 

वर्ष 1863 में रेड क्रॉस अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की पहली बैठक हुई, इस बैठक में कुल 05 सदस्यों ने सहभागिता की। संस्था के गठन के एक वर्ष के भीतर अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसायटी ने यूरोप के कई देशों और वहाँ के अन्य सामाजिक संगठनों को‘ड्यूनेंट प्रस्ताव’प्रेषित किया। मानवीय मूल्यों की रक्षा के प्रति समर्पण को देखकर जीन के इस प्रस्ताव को व्यापक फ़लक पर समर्थन मिला। हेनरी के इस प्रस्ताव को ध्यान में रखते हुए दुनिया के तमाम देशों एवं सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने जिनेवा में कई महत्त्वपूर्ण सम्मेलन भी आयोजित किए। इन बैठकों में युद्धबंदियों के अधिकारों, सैन्य सुरक्षा एवं मूलभूत संरक्षण को लेकर विस्तार से चर्चा हुई और अगस्त 1864 में पहला जिनेवा समझौता संपन्न हुआ। इस समझौते पर आरंभ में 12 मुल्कों ने हस्ताक्षर किए। अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसायटी के अनुसार इस समझौते का मूल उद्देश्य राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना युद्ध में घायल और बीमार सैनिकों को सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराना था। इसके तहत चिकित्सा कर्मियों, धार्मिक एवं जरूरतमंद लोगों के लिए चिकित्सा परिवहन की सुविधा के लिए भी आश्वस्त किया गया।     

राजसभा टीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार देखें तो- “यह संस्था सशस्त्र हिंसा और युद्ध में पीड़ित लोगों और युद्धबंदियों के लिए काम करती है। यह उन क़ानूनों को प्रोत्साहित करती है जिससे युद्ध पीड़ितों की सुरक्षा होती है। सफेद पट्टी पर लाल रंग का क्रॉस का चिन्ह इस संस्था का निशान है। यह चिन्ह पूरी दुनिया में मानवता की सेवा करने का प्रतीक बन गया है। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य युद्ध के दौरान घायल सैनिकों की मदद और चिकित्सा करना है। यह संस्था शांति और युद्ध के समय दुनिया भर के विभिन्न देशों की सरकार के बीच समन्वय का कार्य करती है। रेड क्रॉस सोसायटी के दुनिया भर में एक करोड़ सत्रह लाख से अधिक सक्रिय स्वयं सेवक हैं, रेड क्रॉस का सबसे बड़ा धर्म है- मानव सेवा। रेड क्रॉस पूरी दुनिया में शांति और सौहार्द को कायम करने वाली संस्था के रूप में प्रसिद्ध है।” 

मौजूदा समय में रेड क्रॉस का दायित्व और भी बढ़ गया है। पूरी दुनिया कोरोना महामारी के भयावह संकट से जूझ रही है। ऐसे वैश्विक संकट के सफ़र में हमने बहुत कुछ खो दिया है। संकट चाहे किसी भी तरह का हो, इस तरह की  आपदाओं से समाज का कमजोर तबका ही सबसे अधिक प्रभावित होता रहा है। ऐसी स्थिति में वैश्विक महामारी के इस दौर में रेड क्रॉस संस्था की प्रासंगिकता एवं महत्त्व को दुनिया भर ने स्वीकारा है। कोरोना जैसी भीषण महामारी में भी इस संस्था के स्वयं सेवक अपनी परवाह किए बगैर मानवता की रक्षा के लिए एकजुट हैं, ऐसे निःस्वार्थ सेवियों की जितनी सराहना की जाय कम है। “विपत्तियाँ ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ सामने लाती हैं।” भीषण महामारी में फ्रांसिस बेकन के इस कथन को रेड क्रॉस सोसायटी ने और भी पुख़्ता किया है। 

उल्लेखनीय है, रेड क्रॉस की पहल पर 1937 में विश्व का पहला ब्लड बैंक अमेरिका में खुला। आज विश्व में तमाम ब्लड बैंक से जुड़ी संस्थाओं का संचालन रेड क्रॉस और उनकी सहयोगी संस्थाओं जरिये किया जा रहा है। रक्तदान जैसे महत्त्वपूर्ण जागरुकता अभियान को विस्तार देने में रेड क्रॉस सोसायटी की भूमिका हमेशा से अहम रही है। भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी से जुड़े सदस्य आर. के. जैन का मानना है कि “रेड क्रॉस का दायरा काफी बढ़ता जा रहा है। आज की तारीख में रेड क्रॉस सिर्फ कान्फ्लिक्ट और वॉर की बात नहीं करता, हम उन सभी स्थितियों की बात करते हैं जिसमें मानवीय सहायता की जा सके।” एक प्रकार से देखें तो युद्ध, स्वास्थ्य और आपदा इन तीनों क्षेत्रों में रेड क्रॉस अपनी अहम भूमिका निभाता रहा है। 

रेड क्रॉस एक विचार है, ऐसा विचार जिस पर दुनिया के तकरीबन दो सौ से अधिक देशों के लोग एकमत हैं, जो पूर्णतया मानवता के लिए समर्पित है। आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संगठन दुनिया के किसी भी क्षेत्र में संघर्षरत पीड़ितों के लिए सुरक्षा और सहायता सुनिश्चित कराने के लिए प्रतिबद्ध है। मानवीय सुरक्षा ही इस संस्था का मुख्य ध्येय है। यह एक ऐसा गैर सरकारी संगठन है जो विश्व की किसी भी आपदा से निजात पाने के लिए तैयार रहता है। रेड क्रॉस संगठन किसी भी प्रकार के भेदभाव से परे ऐसी इकाई है जिसका गहरा सामाजिक सरोकार है, भावनात्मक स्तर पर यह संगठन समरसता एवं सामंजस्य का अनूठा दृष्टांत है। उक्त संदर्भ में हिंदी के वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल की कविता का उल्लेख बहुत ही समीचीन प्रतीत होता है: “मैं चाहता हूँ स्वाद बचा रहे/ मिठास और कड़वाहट से दूर/ जो चीज़ों को खाता नहीं है/ बल्कि उन्हें बचाए रखने की कोशिश का एक नाम है/ एक सरल वाक्य बचाना मेरा उद्देश्य है/ मसलन यह कि हम इंसान हैं/ मैं चाहता हूँ इस वाक्य की सच्चाई बची रहे।”

शरणार्थियों की हिफ़ाज़त करने उन्हें उनके गंतव्य तक पहुँचाने में इस संस्था की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। रेड क्रॉस संगठन जरूरतमंद और निर्दोष लोगों की सुरक्षा के लिए जाना जाता है। मानवाधिकार का उल्लंघन कोई भी देश न कर सके, इस दिशा में भी इस संगठन ने महत्त्वपूर्ण प्रयास किए हैं। 

भारत में दी इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी की स्थापना 1920 में की गई। 03 मार्च 1920 को इससे संबंधित विधेयक विधान परिषद में पेश किया गया था। 17 मार्च, 1920 को विधेयक को पारित कर दिया गया, तत्कालीन गवर्नर जनरल की सहमति भी मिल गई और यह अधिनियम बन गया। 1950 में भारत ने जिनेवा कन्वेन्शन पर भी अपनी सहमति दर्ज कर दी। एक प्रकार से देखें तो रेड क्रॉस सोसायटी एक संस्था नहीं बल्कि आंदोलन है जो आरंभ से ही अपने उद्देश्यों को लेकर संघर्षरत है। मानवाधिकार कानून के गठन पर जोर देते हुए, इसे तत्काल प्रभाव से लागू करवाने में इस संगठन का महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप रहा है, यह कार्य रेड क्रॉस सोसायटी की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है। आज रेड क्रॉस संगठन दुनिया भर में आर्थिक सुरक्षा, पीने का पानी, जरूरतमंद को आवास, शिक्षा, रक्तदान शिविरों का आयोजन, स्वास्थ्य एवं यौन शोषण के खिलाफ जागरुगता अभियान जैसे कई महत्त्वपूर्ण कार्यों को लेकर निरंतर सक्रिय है। प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गए हजारो लोगों एवं हताहत सैनिकों की मदद इसी संगठन के द्वारा की गई थी। आज दुनिया के लगभग सभी देशों में इसकी शाखाएँ हैं जो अपने उद्देश्यों के साथ सक्रिय हैं। संस्था के सदस्य निःस्वार्थ भाव से गांवों और शहरों में एंबुलेंस और दवाइयों की सुविधा उपलब्ध करवाते रहे हैं। रेड क्रॉस संस्था से जुड़े सक्रिय कार्यकर्ता प्रो. ए के पाशा ने संस्था के समक्ष आ रही चुनौतियों एवं उसकी उपलब्धियों के संदर्भ में महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए एक साक्षात्कार में बताया कि- “मौजूदा समय में दुनिया भर में कई नई समस्याओं ने जन्म ले लिया है। आतंकवाद और युद्ध के दरमियान मारे गए लोगों के शवों की पहचान के लिए रेड क्रॉस संगठन ने फॉरेंसिक साइंस के जरिये नई तकनीकी का इस्तेमाल कर मदद की है। इसके अलावा सम्मानजनक ढंग से उनकी अत्येष्टि की व्यवस्था का भी प्रावधान किया है। युद्धबंदियों को छुड़ाने में भी रेड क्रॉस सोसायटी की भूमिका भी अत्यंत सराहनीय है।” रेड क्रॉस संस्थान के अभूतपूर्व योगदान को ध्यान में रखते हुए इसे कर मुक्त कर दिया गया है। आज भारत में तकरीबन हजार के करीब रेड क्रॉस की शाखाएँ अपने उद्देश्यों को लेकर निरंतर सक्रिय हैं। 

किसी भी दिवस की सार्थकता उसके उद्देश्यों के प्रतिफलन एवं विस्तार में निहित है। आज हम बहुत ही भयावह और कठिन दौर से गुजर रहे हैं, हमारी जिम्मेदारियाँ पहले से कहीं अधिक बढ़ गई हैं। यह बात कहने में हमें जरा भी संकोच नहीं कि समय के साथ हमारी संवेदनाएं क्षीण होती जा रही हैं। समय है, प्रतिबद्धता के साथ आदमीयत को बचाए रखने का। आदमीयत बची रहेगी तो हम सब कुछ बचा पाने में कामयाब होंगे, यही इस दिवस की सार्थकता भी होगी।

परिचय: 

(डॉ. प्रदीप त्रिपाठी, संपादक कंचनजंघा & सहायक प्रोफेसर, हिंदी विभाग, सिक्किम विश्वविद्यालय, गंगटोक)

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