मुझे बता तो सही, चाँद और सूरज ही रोज ढलते क्यूँ हैं
चाहने वाले ही, मेरे नाम से जलते क्यूँ हैं।।
कोई ख़ता गर हो तो मुझसे कह तो सही
आखिर वो अंदर ही अंदर, घुट-घुटकर मरते क्यूँ हैं।।
तेरी ख्वाहिस है गर तो, मैं ये शहर छोड़ भी दूंगा,
मुझे बता तो सही, लोग मेरे नाम से नफरत करते क्यूँ हैं।।
झूठा मक्कार बेईमान, भला कौन नहीं है यहाँ ?
मेरी फितरत को लोग बेईमान कहते क्यूँ हैं।।
मुझे फ़क्र है इस शहर के इन चंद ईमानदारों पर
आखिर ये ईमानदार सब संसद में ही रहते क्यूँ हैं ।।
__@ प्रदीप त्रिपाठी
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