Tuesday, 7 October 2014

"खामोशी का अर्थ 'पराजय' नहीं होता"

अस्सी के दशक के आरंभ में 'कविता' की वापसी' की घोषणा से समकालीन कविता का जो रूप-स्वरूप निर्मित हुआ था, वह अब उससे अधिक भिन्न रूपों, रंगों तेवरों और भंगिमाओं में मौजूद है।
अश्विनी कुमार पंकज का काव्य-संग्रह 'खामोशी का अर्थ पराजय नहीं होता' एक ऐसे संकटग्रस्त समय में प्रकाशित है जब देश की बड़ी आबादी अपने दुख-दैन्य और राजनीतिक दलों की निरंतर वादाखिलाफी के कारण फिलहाल खामोश है। अश्विनी खामोशी का अर्थ पराजय नहीं मानते। यह खामोशी तो फिलहाल इसलिए भी वाजिब है कि 'कोई भी जगह सुरक्षित नहीं' है। अश्विनी की कविता असुरक्षित जगहों की कविता है। अपनी कविताओं में अश्विनी दर्शक नहीं हैं। कविता उनके लिए न पर्यटन है न उद्योग है। वह सृजन है और जाहिर है सृजन के मार्ग में उपस्थित बाधक तत्वों के विरूद्ध कवि खड़ा है।
"मेरी ये खुरदरी हथेलियाँ
मकराना के पत्रों से भी ज्यादा खूबसूरत हैं
क्योंकि ये श्रम की सान पर घिसे हैं"
दृढ़ संकल्प और निश्चय इस कविता संग्रह की विशेषता है। कवि ने इसे लंबे समय में अपने श्रम और संघर्ष से इसे अर्जित किया है। समकालीन हिन्दी कविता में इस काव्य संकलन को अनदेखा नहीं किया जा सकता।    

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