Friday, 6 November 2015

वो पगडंडी अदम के गाँव जाती है...


डेली न्यूज़ ऐक्टिविस्ट में 22 अक्टूबर, 2015 (जन्मदिवस पर) को प्रकाशित



वो पगडंडी अदम के गाँव जाती है...

उर्दू गज़लों के इतिहास में अदम गोंडवी की विशिष्ट पहचान है। अदम की शायरी में हमारा सामना बार-बार उस राजनीति से होता है जिसे हम चाहें तो लेखन की राजनीति कह सकते हैं। अदम ने एक जगह अपने परिचय के तौर पर लिखा है-फटे कपड़े में तन ढाँके गुजरता हो जहां कोई/समझ लेना वो पगडंडी अदम के गाँव  जाती है।निश्चित रूप से यह पंक्तियाँ अदम के समय और समाज को बखूबी बयाँ करती हैं। अदम के सरोकारों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है जब वे खुद से पूछते हैं-घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है/बताओ कैसे लिख दूँ , धूप फागुन की नशीली है।अदम ने न सिर्फ सामंतवादी और संप्रदायवादी विचारों एवं ताकतों के खिलाफ आवाज़ उठाई बल्कि आजादी के बाद पनपी घटिया राजनीति से हो रहे आम जनता के दोहन एवं उनके वाज़िब अधिकारों से वंचित रखने की सोच का भी उतने ही आक्रामक तरीके से प्रतिरोध किया। अदम लिखते हैं- तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है/मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।इन पंक्तियों में अदम की पक्षधरता देश के उस सामान्य जन से है जो आजादी के 68 साल बाद भी भूखी है, बेघर है और बेबस है। अदम ने राजनीतिक दलों की सच्चाईयों को जनता के समक्ष रखने में कोई भी हिचकिचाहट नहीं महसूस की। वे कवि रूप में किसी को नहीं बख्शते थे। उनकी निगाहें वास्तविकता की तलाश में सदैव तत्पर रहती थी-मेरे हिस्से की आजादी, भिखारी के कब्र सी है /कभी तकरीर की गर्मी से, चूल्हा जल नहीं सकता/यहाँ वादों के जंगल में, सियायात बेहया सी है /हमारे गाँव का गोबर, तुम्हारे लखनऊ में है/जबाबी खून से लिखना किस मुहल्ले का निवासी है। वास्तव में अदम मानवीय सरोकार के कवि हैं। उनकी अनुभूति, जटिलता और तनाव के नाम पर न केवल विसंगतियों और विडंबनाओं के चित्रण तक सीमित है बल्कि समाज के उस नग्न यथार्थ को भी उधेड़ती है जो हमेशा से हाशिये पर रहे हैं।
            अदम गोंडवी की जिंदगी और शायरी दोनों का रंग बिल्कुल ही सादा है। एक प्रतिबद्ध कवि की तरह अदम ने सर्वाधिक तात्कालिक कविताएं लिखने के खतरे उठाए । नागार्जुन के शब्दों को उधार लेते हुए कहूँ तो वे सिर्फ प्रतिबद्ध ही नहीं सम्बद्ध और आबद्ध भी थे । उनका जनवाद कहीं और से लिया या ओढ़ा हुआ नहीं वरन जमीनी हकीकत था। वास्तव में अदम बड़े शायर हैं। सिर्फ इसलिए नहीं कि उनकी कविताओं का कैनवास बड़ा है । इसलिए कि वे अत्यधिक संवेदनशील हैं।
            अदम ने अपनी रचनाओं में समाज के हर पक्षों को उठाया है । भ्रष्टाचार, आडंबर, सांप्रदायिकता के प्रति उनके मन में तीव्र आक्रोश है । एक प्रकार से कहें तो अदम का तेवर नागार्जुन, धूमिल या रघुवीर सहाय से जरा भी कम नहीं है। जिस सत्ता के संदर्भ में नागार्जुन जमीदार हैं, साहूकार हैं, बनिया हैं, व्यापारी हैं या बिरला-टाटा डालमिया की तीसों दिन दीवाली है जैसी कविताएं लिखते हैं उसी सत्ता के खिलाफ अदम भी लिखते हैं-काजू भुने हैं प्लेट मे, ह्विस्की गिलास में / उतरा है रामराज, विधायक निवास में।
जहां रघुवीर सहाय लिखते हैं-राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत-भाग्य विधाता है / फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता है।उसी का रेखांकन अदम भी करते हैं-तुम्हारी मेज चांदी की तुम्हारे जाम सोने के /जहां जुम्मन के घर में आज भी फूटी रकाबी है।
            अदम आजादी के बाद के ऐसे शख्सियत हैं जिन्होंने हिंदुस्तान में अमीर को अमीर और गरीब को गरीब होते देखा है। आजादी के बाद की व्यवस्था का विरोध एवं मोहभंग ही उनकी कविता का मूल स्वर है। इस संदर्भ में अदम सीधे धूमिल की परंपरा से जुड़ते हैं। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि धूमिल व्यवस्था विरोध तथा आजादी से पैदा हुए मोहभंग के सबसे मुखर एवं समर्थ कवि हैं। धूमिल कहते हैं –‘क्या आजादी तीन थके रंगों का नाम है /जिसे एक पहिया ढोता है/ या इसका कोई खास मतलब होता है। एक प्रकार से कहें तो अदम गोंडवी की कविताओं में धूमिल की इस समझ और विचार का विस्तार है। वास्तव में अदम की कविता का सबसे महत्त्वपूर्ण स्वर नागार्जुन और धूमिल की तरह राजनीति, लोकतंत्र और उपभोक्तावाद के अंतर्विरोध का परिणाम है। निदा फ़ाज़ली के शब्दों में कहें तो “अदम बेजुबानों के जुबान थे। अदम की गजलों में हमारे देश का वह इतिहास छुपा है जो आज भी महाश्वेता देवी के उपन्यासों और प्रेमचंद के लेखन में कैद है।...यह जुबान भले ही मुख्य धारा के काव्य में न गिनी जाय मगर यह वो जुबान है जो देश की चौथाई से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करती है ।”
            स्वाधीन भारत की व्यवस्था व शासक वर्ग के बारे में अदम की दृष्टि बिल्कुल साफ थी । इसीलिए सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ अदम गरीब किसानों, मजदूरों, दलितों एवं शोषितों के पक्ष में  खड़े होते हैं। अदम चाहते हैं कि उनकी कविता सामान्य जनता की आवाज बने। इस संदर्भ में वे कहते भी हैं कि भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो /या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो।
            अदम शुरू से ही चुनौती स्वीकार करने वाले और चुनौती देने वाले कवि हैं। अपनी जनप्रतिबद्धता के चलते अदम जिस तेवर के साथ राजसत्ता पर हमला बोलते हैं वैसा तेवर अन्यत्र कवियों में बहुत कम ही दिखाई देता है।  जब- जब उन्हें लगा कि राजसत्ता जनता के हितों के विरुद्ध जा रही है या राजनेता जनता को धोखा दे रहे हैं तब-तब अदम जनता की आवाज  बनकर उठ खड़े हुए । अदम की गजलों का जनतंत्र बेहद लचीला और व्यापक है। इसमें सभी समानधर्मी एवं जनपक्षधर विचारधाराओं के लिए स्पेस है। उनकी कविताएं समसामयिकता से टकराती हुई टिकाऊ कविता है। इस टिकाऊपन की वजह यह है कि व्यक्ति और समाज के आधुनिक रूपान्तरण के बावजूद आज भी  देश और समाज के बुनियादी मुद्दे जस के तस हैं।
            वस्तुतः अदम मनुष्य की स्वाधीनता के कवि हैं । अदम की कुछ कविताएं काफी विवादास्पद भी रही हैं। उनकी कविताओं का विवादास्पद होना भी एक प्रकार से उनके प्रतिरोध की शक्ति है । वे जनकवि इसलिए नहीं हैं कि उनकी कविताएं जनता की जुबान पर चढ़ चुकी हैं बल्कि इसलिए कि वे जनता के बारे में सोचते और लिखते हैं । कुल मिलाकर देखें तो अदम सक्रिय जनवाद के पक्षधर और प्रगतिशीलता के निकष पर समर्थ कवि हैं ।


लेखकीय परिचय- 

प्रदीप त्रिपाठी        

जन्म-7 जुलाई, 1992    
शैक्षणिक योग्यता- एम.ए. हिन्दी(तुलनात्मक सा.), एम.फिल. हिन्दी (तु.सा.), लोक-साहित्य, एवं कविता-लेखन में विशेष रुचि  
संप्रति-  डेली न्यूज़ ऐक्टिविस्ट में साप्ताहिक लेखन, साहित्य विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, पी-एच. डी. में शोधरत
प्रकाशित रचनाएँ- विभिन्न चर्चित पत्र-पत्रिकाओं (दस्तावेज़, अंतिम जन, परिकथा, कल के लिए , वर्तमान साहित्य, अलाव,  नवभारत टाइम्स, डेली न्यूज़ ऐक्टिविस्ट आदि) में शोध-आलेख एवं कविताएं प्रकाशित और 15 से अधिक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तरीय सेमिनारों में प्रपत्र-वाचन एवं सहभागिता ।
संपर्क- साहित्य विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा
स्थायी पता- महेशपुर, आजमगढ़, उ.प्र., 276137
संपर्क-सूत्र- 08928110451
Email-  tripathiexpress@gmail.com
लेखकीय वक्तव्य- अनुभूतियों को शब्दबद्ध करना ही मेरी रचना का ध्येय है।   

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